हास्य-व्यंग्य >> राग मिलावट मालकौंस राग मिलावट मालकौंसरवीन्द्र कालिया
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राजनीति में नहीं, साहित्य में भी छवि का विशेष महत्त्व स्वीकार किया गया है
राजनीति में नहीं, साहित्य में भी छवि का विशेष महत्त्व स्वीकार किया गया है। समझ में नहीं आता, नरेश मेहता मैथिलीशरण गुप्त की वैष्णव छवि का अनुसरण कर रहे हैं या अज्ञेय की संभ्रांत छवि का। अमृत राय आज भी राजकपूर की छवि की याद ताजा करते हैं। यह दूसरी बात है कि उनके चेहरे पर राजकपूर की मक्खी छाप मूंछे नदारद हैं, जबकि विजयमोहन सिंह ने नामवर छवि का अनुसरण करते हुए चेहरे पर दाढ़ी ली है। कई बार असली चेहरा छिपाने के लिए यह सब करना ही पड़ता है। डॉ. जगदीश गुप्त ने अज्ञेय-मुक्तिबोध के प्रभाव में न आकर गणेश जी की छवि को ही सर्वोपरि माना है। जगदीशजी को स्कूटर पर देखकर हमेशा यही लगता है जैसे गणेशजी चूहे की सवारी कर रहे हैं।
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